Header Ads

ad728
  • Breaking News

    मां से मिले थे धुंधकारी को उसके संस्कार -पंडित रमाकांत



    सहजनवा गोरखपुर बांसगांव सन्देश। किसी व्यक्ति की प्रथम गुरु उसकी मां  होती है । उसके हर संस्कार निश्चित रूप से उसकी संतानों में दिखाई देता हैं । धुंधकारी की मां धुंधली ओछी मानसिकता की  झगड़ालू महिला थी । जिस कारण धुंधकारी पाप में रत होकर अधम कार्य करने लगा  और अंत में वह दुर्गति को प्राप्त हुआ ।   

    उक्त बातें- वृंदावन धाम से पधारे पंडित रमाकांत शास्त्री ने कही । उन्होंने कहा कि राजा परीक्षित के प्रश्नों का उत्तर देते हुए- सुखदेव जी ने कहा कि- हे राज! तुंगभद्रा नदी के तट पर रहने वाला आत्मदेव नाम के वैदिक ब्राह्मण को कोई संतान नहीं थी, तपस्या के बाद संत की कृपा से उसे दो संतान प्राप्त हुई । एक का जन्म स्त्री से, तो दूसरे का जन्म गौ माता  से हुआ । 
    कथा व्यास ने कहा-  दोनों के आचार- विचार और संस्कार  अलग-अलग थे । बड़े
     बेटे का नाम धुंधकारी तथा दूसरे पुत्र का नाम  गोकर्ण रखा । गोकर्ण  पित्र भक्त और सर्वे भवंतु सुखिनः । सर्वे संतु निरामया ।। में  विश्वास रखने वाले संत थे । वहीं धुंधकारी  अपने संस्कारख्वाजा से गलत संगत में पड़कर बुद्धि को और बिगाड़ लिया । उसके  व्यभिचार और पाप कर्म देखकर पिता आत्मदेव घर छोड़ कर चले गए । माता धुंधली  अंधकूप में गिर कर मर गई । अंत में वह व्यभिचारिणी स्त्रियों के हाथ भयानक  मृत्यु को प्राप्त हुआ । प्रेत जोनि में  बहुत समय तक वह दुख भोगता रहा । अंत में संत गोकर्ण की कृपा से उसे मुक्ति मिली  । उक्त अवसर पर मुख्य यजमान लक्ष्मी नारायण पांडे, देवी पांडे, ध्रुव नारायण पांडे, ध्रुव कुमार शुक्ला, कन्हैया निषाद, देवी शरण देवी शरण, श्रवण कुमार, वेद प्रकाश समेत कई लोग मौजूद थे ।

    कोई टिप्पणी नहीं

    thanks for comment...

    Post Top Ad

    ad728
    ad728

    Post Bottom Ad

    ad728
    ad728