Header Ads

ad728
  • Breaking News

    पीढियों के तप से राष्ट्र और समाज के लिए कुछ प्राप्त होता है - प्रेमभूषण जी महाराज




    चिउटहां बसावनपुर मे चल रहे श्रीराम कथामृत मे खराब मौसम के बाद भी उमड़े श्रद्धालु

    कौड़ीराम गोरखपुर। भगवान राम जी के जीवन से हमें यही शिक्षा मिलती है कि बिना तपस्या के कुछ भी प्राप्त नहीं होता है। मनुष्य को अपने जीवन में अगर कुछ चाहिए तो उसे तपना होगा। जब हमारी पीढ़ी में कोई तप करता है तो हमें कुछ प्राप्त होता है और जब कई पीढ़ियां तप करती चली आती हैं तब राष्ट्र और समाज के लिए कुछ विशेष प्राप्त होता है।
    उक्त बातें गोरखपुर के कौड़ीराम क्षेत्र स्थित चिउटहाँ बसावनपुर ग्राम में शनिवार से शुरू श्रीराम कथा के द्वितीय दिन प्रेमभूषण महाराज ने व्यासपीठ से कथा वाचन करते हुए कही।  श्री राम कथा गायन के क्रम में कहा कि
    राम जी के जीवन की कथा को कहना-सुनना तो सरल है लेकिन उसे जीवन मे उतारना बहुत ही कठिन है। परंतु भगवान राम जी ने जिस नवधा भक्ति का ज्ञान माता शबरी जी को दिया है उसमें से सबसे सरल भक्ति है कथा का श्रवण करना। शर्त केवल इतना है कि हम भावपूर्वक कथा का श्रवण करें। भक्तों को सर्वकाल विश्वास में रहना चाहिए। क्योंकि भगवान जो भी करते हैं उसी में हमारा परमहित होता है।
    पूज्यश्री ने कहा कि रामचरित मानस जी हमारे आधार ग्रंथ हैं।  यह गोस्वामी जी की तपस्या का परिणाम है। भारतवर्ष में श्रीरामचरितमानस जी को गाने वाले चार प्रकार के व्यास हुये हैं। चौपाई, छंद, सोरठा और दोहा इसमें कहां क्या लिखा है ? अंदर क्या है? यह है रहस्यवाद। दूसरा है सिद्धांतवाद, तीसरा प्रतीक वाद और चौथा भाव वाद। हम भाववाद के वक्ता हैं।
    श्रीरामचरितमानस जी में कुल 7 कांड हैं।
    बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्किंधा कांड, सुंदरकांड, युद्ध कांड और उत्तरकांड।  भगवत प्राप्ति भगवत दर्शन की यह 7 सीढ़ी है।
    मानस जी में लिखा है -
    जे श्रद्धा संबल रहित नहिं संतन्ह कर साथ।
    तिन्ह कहुँ मानस अगम अति जिन्हहि न प्रिय रघुनाथ॥
    अर्थात मानस जी का लाभ प्राप्त करने के लिए मनुष्य के अंदर श्रद्धा भाव सबसे आवश्यक है। मानस जी का प्रारंभ भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के प्रसंग से शुरू होता है। इसके पीछे भी यह सबसे बड़ा कारण है कि भगवान शिव  विश्वास के प्रतीक हैं और माता पार्वती श्रद्धा की प्रतीक हैं। जिस मनुष्य में श्रद्धा और विश्वास का भाव उपस्थित होगा वही रामचरितमानस में गोता लगाकर भगवान का दर्शन प्राप्त कर सकेगा।
    नहीं तो संशय स्वरूपा माता सती श्रीराम कथा सुनने गई लेकिन कथा उनके कान में नहीं उतरी।  जिसकी जितनी श्रद्धा दृढ़ है उसको उतनी ही भागवत फल की प्राप्ति है।  श्रद्धा में अर्पण और समर्पण हो तो श्रद्धा अवश्य फल प्रदान करती है।
     हम जो करते हैं उस पर हमें ही विश्वास नहीं होता है तो फिर कैसे भगवान का दर्शन होगा। खटपट मिटे तो झटपट दर्शन होगा। लाख कोई समझाए भटकना नहीं है। जो इष्ट हैं उनमें केवट भैया और शबरी मैया की तरह से निष्ठ रहना है। सुग्रीव जी की तरह नहीं बनाना है। भगवान से मिलने के बाद भी संसार में  लिपटा कर भगवान को ही भूल  गए।
    जिसके जीवन में संशय रहता है उसका विनाश हो जाता है। इसलिए संशय में कदापि नहीं रहना चाहिए। सदा और सर्वदा विश्वास में रहे क्योंकि यह कथा भी विश्वास ने ही सुनाई है।
     रचि महेश निज मानस राखा।
     भाई सुसमय शिवा सन भाखा।।
     विश्वास ने यह कथा दी। कथा का प्रारंभ ही विश्वास के श्री मुख से हुआ। भगत को न तो वाद में रहना चाहिए ना विवाद में रहना चाहिए, सदा संवाद में रहना चाहिए। यह कथा संवाद की कथा है। पूज्यश्री ने दर्जनों भजनों की सुमधुर प्रस्तुति से हजारों की संख्या में उपस्थित श्रोतागण को झूम कर नृत्य करने के लिए बाध्य कर दिया।
    कथा के मुख्य यजमान अजय कुमार सिंह व कृपाशंकर त्रिपाठी, दैनिक यजमान डॉ डीके राय, अमरजीत राम त्रिपाठी पूर्व जिला जज,
    राजेश बाबू पांडेय, पंडित बालमुकुंद त्रिपाठी, शैलेश त्रिपाठी, विनोद पांडेय, कृष्ण मुरारी दुबे, मधुबन से पधारे विमल श्रीवास्तव, राजेश सिंह राजन जिला महामंत्री भाजपा किसान मोर्चा, सात्विक प्रताप सिंह, सम्पूर्णानन्द त्रिपाठी ने सपरिवार व्यासपीठ का पूजन किया और भगवान की आरती की।

    1 टिप्पणी:

    thanks for comment...

    Post Top Ad

    ad728
    ad728

    Post Bottom Ad

    ad728
    ad728